गांव का एक लड़का ( 24 )
बी एससी करते हुए पहली बार जाना कि डॉ बनने के लिए एक प्रतियोगी परीक्षा होती है ' सीपीएमटी ' l डॉ कहीं आसमान से नहीं टपकते, हमारे आस पास के लोग ही डॉ बनते हैं l केकेसी का डिग्री सेक्शन पीएमटी के शिक्षकों का गढ़ हुआ करता था l क्लास में पढ़ाते समय ज़ूलोजी के लाल साहेब अक्सर कहते कि कम्पटीशन के लिए पढ़ रहे होते तो तुम्हे बताते कि इसमे किस तरह के सवाल पूछे जाते हैं? शायद कोचिंग में पढने के लिए उकसावा ही होता था l
हमारे ग्रुप में भी सीपीएमटी के चर्चे शुरू हुए l दरअसल बायो वालों के लिए हमारे जमाने में ले दे कर बस एक ही प्रतियोगी परीक्षा बचती थी, पीएमटी l उसकी तैयारी के लिए कोचिंग ही एक मात्र रास्ता था l कॉलेज की पढाई के बलबूते तो कुछ होना - जाना नहीं था l सबने अपनी - अपनी परिस्थितियों का आंकलन किया और फिर मैं और सिराज भाई ने फैसला लिया कि अब समय आ गया है कि हजारों - लाखों के झुण्ड के साथ हमें भी पीएमटी - पीएमटी खेलना चाहिए l सिराज के एक बड़े भाई उन दिनों क़तर या जेद्दाह में थे l उसे पैसे की कोई समस्या नहीं थी l दरअसल पैसे के मामले में सबसे मजबूत फिलहाल वही हुआ करता और गाहे बगाहे खर्चा भी वहन करता l
पिताजी से इस मामले में राय मशविरा हुआ l और कोई चारा नहीं था l कोचिंग की फीस लगभग दो हजार रुपये पूरे साल की होती थी, जिसे जुटाना मेरे अकेले के वश का था नहीं l पिताजी ने कहा, यार तुम थ्रो आउट थर्ड डिवीज़न l यहाँ फर्स्ट क्लास वाले सालों से घिस कर मैदान छोड़ चुके हैं l तुम क्या डॉ बनोगे? पैसा फूंकना हो तो फूंक डालो l बाल हठ के आगे माँ बाप को झुकना ही पड़ता है l पिताजी से हरी झंडी मिलने के बाद फिर कोचिंग खोजने की शुरुआत हुई l
बनारसी बाग़ के पास एक कोचिंग हुआ करती ' आई आर कोचिंग ' l जिसके करता धरता शायद इच्छा राम चतुर्वेदी जी थे l पूरे प्रदेश में इस कोचिंग का बड़ा नाम था l ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में यहीं के बच्चे प्रवेश पाते थे l वह पहले से छांट कर अच्छे बच्चे ही लेते l टीचर भी बहुत योग्य थे l वहाँ पढने के लिए पहली शर्त यही थी कि बारहवीं बोर्ड में अव्वल दर्जा l अव्वल तो मेरे पास अव्वल नहीं था, दूसरे फीस भी सबसे ज्यादा थी l सो, उधर की और अपुन का जाना ही नहीं हो सका l साइकिल ने उस और मुड़ने से इनकार कर दिया l
दूसरे नंबर पर हज़रत गंज में एक कोचिंग संस्थान था ' स्टैण्डर्ड कोचिंग ' कालान्तर में वह विभाजित होकर ' न्यू स्टैण्डर्ड ' और ' ओल्ड स्टैण्डर्ड ' बना lहमारे जमाने में वह अविभाजित था l बाजपेई कचौरी वाली सड़क पर कोचिंग खोजते हुए हम और सिराज भाई पहुंचे l वहाँ पर बताया गया कि अगले दिन हाईस्कूल, इंटर की अंकतालिकाएं ले कर आइये तब प्रवेश प्रक्रिया पर बात होगी l मेरा दिल धड़क उठा l
खैर, अगली सुबह हम दोनों लोग पहली मंजिल पर बने एक छोटे ऑफिस में एक मोटे आदमी के सामने खड़े थे l पहला नंबर मेरा ही था l उस आदमी ने मेरी अंकतालिकाएं बहुत ध्यान से देखीं, फिर मुझे ऊपर से नीचे की और देखा l मेरी साँसें अटकी हुई थीं l मेरे सामने मेरी लैमिनेटेड अंकतालिकाएं पटकते हुए मुझे बाहर निकलने का इशारा किया l मैंने सोचा किसी कमरे की तरफ इशारा कर रहा है, प्रवेश प्रक्रिया पूरा करने के लिए l मैंने पूछा, कहाँ जाना है? उसने कहा, बाहर निकलो, तुम्हारा प्रवेश यहाँ सभव नहीं l वह बाक़ी और लोगों से बात करने में मशगूल हो गया l मैंने निराश भाव से सिराज भाई की तरफ देखा l उसने कहा चलो एक बार और रिक्वेस्ट करते हैं l मैंने मिमियाती आवाज़ में उस मोटे आदमी से कहा, ' सर, देख लीजिये प्लीज़ l हम पूरी मेहनत से पढाई करेंगे l पूरी फीस एडवांस में देंगे l उसने बिना मुंडी उठाए सख्त लहजे में कहा, 'जाते हो कि धक्का देकर निकालूँ l'
अब कहने सुनने को कुछ बाक़ी नहीं रह गया था l जीवन में पहली बार इतना अपमानित महसूस कर रहा था l आत्मविश्वास को जबरदस्त ठोकर लगी थी l इसे टूट कर बिखर जाना चाहिए था l लेकिन इसका मेरे ऊपर उलटा प्रभाव पड़ा l जैसे - जैसे मैं सीढियों से नीचे उतर रहा था वैसे - वैसे मन में यह प्रतिज्ञा दोहरा रहा था कि अब कुछ भी हो जाए, सलेक्शन ले कर ही मानूंगा l नीचे आते - आते सिराज ने कहा, भाई, जब कोचिंग में एडमीशन नहीं हो पा रहा है तो मेडिकल कॉलेज में क्या हो पायेगा l लेकिन मैं तब तक अपने दिल में ठान चुका था कि मुझे सलेक्शन लेना ही है, चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े l
जारी है .......
Comments
Post a Comment